काठा (Acacia catechu) – परिचय, फायदे, उपयोग और नुकसान English Name: Cutch Tree (Acacia catechu) परिचय काठा (Acacia catechu) एक महत्वपूर्ण आयुर्वेदिक वृक्ष है, जिसे खैर के नाम से भी जाना जाता है। इसकी छाल और लकड़ी से कटरी नामक पदार्थ प्राप्त किया जाता है, जिसका उपयोग औषधीय रूप में किया जाता है। आयुर्वेद में काठा का उपयोग विशेष रूप से मुख स्वास्थ्य, गले की समस्याओं, पाचन तंत्र को सुधारने और घावों को भरने के लिए किया जाता है। काठा के फायदे ✔ मुँह और दांतों के लिए लाभकारी – काठा दांतों और मसूड़ों को मजबूत बनाता है और मुँह के छालों में राहत देता है। ✔ गले की समस्याओं में राहत – गले की खराश, सूजन और टॉन्सिलाइटिस में इसका काढ़ा प्रभावी होता है। ✔ पाचन तंत्र को सुधारता है – यह डायरिया, अपच और पेट दर्द जैसी समस्याओं में सहायक होता है। ✔ घाव भरने में सहायक – इसके एंटीसेप्टिक गुण चोट, फोड़े-फुंसी और जलन को ठीक करने में मदद करते हैं। ✔ त्वचा के लिए फायदेमंद – यह त्वचा की खुजली, एलर्जी और संक्रमण को दूर करने में सहायक होता है। ✔ रक्त को शुद्ध करता है – इसका सेवन शरीर से विषैले तत्व निकालने में सहायक होता है। ✔ मधुमेह नियंत्रण में सहायक – काठा रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है। काठा का उपयोग 🔹 काढ़ा – इसकी छाल या लकड़ी को उबालकर बनाया गया काढ़ा गले और पाचन के लिए लाभकारी होता है। 🔹 पाउडर – इसकी छाल का चूर्ण दांतों की सफाई और घाव भरने के लिए प्रयोग किया जाता है। 🔹 लेप – त्वचा संक्रमण और जलन के इलाज के लिए काठा का पेस्ट प्रभावित स्थान पर लगाया जाता है। 🔹 आयुर्वेदिक औषधियों में प्रयोग – इसे कई आयुर्वेदिक और यूनानी औषधियों में मिलाया जाता है। 🔹 माउथवॉश – इसका प्रयोग मुँह की दुर्गंध और मसूड़ों की समस्याओं को दूर करने के लिए किया जाता है। काठा के नुकसान और सावधानियाँ ⚠ अत्यधिक मात्रा में सेवन करने से कब्ज की समस्या हो सकती है। ⚠ गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को इसका उपयोग डॉक्टर की सलाह से करना चाहिए। ⚠ संवेदनशील त्वचा वाले लोगों को इसका बाहरी प्रयोग करने से पहले पैच टेस्ट करना चाहिए। ⚠ लंबे समय तक अधिक मात्रा में उपयोग करने से शरीर में अत्यधिक ठंडक हो सकती है। निष्कर्ष काठा (Acacia catechu) एक अत्यंत लाभकारी औषधीय वृक्ष है, जो मुँह, गले, पाचन और त्वचा रोगों के इलाज में उपयोगी होता है। इसका सही मात्रा में और आयुर्वेदिक विधि से सेवन करने पर अधिकतम लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं। हालांकि, इसे संतुलित मात्रा में और आवश्यक सावधानियों के साथ उपयोग करना चाहिए ताकि किसी भी प्रकार के दुष्प्रभाव से बचा जा सके।
