लज्जालु (Mimosa pudica) – परिचय, फायदे, उपयोग और नुकसान English Name: Touch-Me-Not Plant (Mimosa pudica) परिचय लज्जालु (Mimosa pudica), जिसे छुई-मुई के नाम से भी जाना जाता है, एक रोचक गुणों वाला औषधीय पौधा है। इसका सबसे अनोखा गुण इसकी पत्तियों का छूने पर सिकुड़ जाना है। आयुर्वेद में इसे विभिन्न रोगों के उपचार में उपयोग किया जाता है, विशेष रूप से त्वचा रोग, पाचन तंत्र से जुड़ी समस्याएँ, और महिलाओं के स्वास्थ्य संबंधी विकारों में। इसमें एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-इंफ्लेमेटरी और दर्द निवारक गुण पाए जाते हैं। लज्जालु के फायदे ✔ घाव भरने में सहायक – इसके एंटीसेप्टिक गुण चोट और घाव को जल्दी ठीक करने में मदद करते हैं। ✔ त्वचा रोगों के लिए फायदेमंद – खुजली, एक्जिमा और अन्य त्वचा संक्रमण को ठीक करने में सहायक है। ✔ महिला स्वास्थ्य के लिए लाभकारी – अनियमित मासिक धर्म और अधिक रक्तस्राव की समस्या में इसका उपयोग किया जाता है। ✔ पाचन तंत्र को सुधारता है – गैस, अपच और दस्त जैसी समस्याओं को दूर करता है। ✔ मधुमेह नियंत्रण में सहायक – रक्त शर्करा के स्तर को संतुलित करने में मदद करता है। ✔ नींद और मानसिक शांति प्रदान करता है – इसमें प्राकृतिक रूप से तनाव कम करने और अच्छी नींद लाने के गुण होते हैं। ✔ बवासीर में राहत – इसका उपयोग बवासीर के दर्द और सूजन को कम करने के लिए किया जाता है। लज्जालु का उपयोग 🔹 काढ़ा – इसकी जड़ों और पत्तियों से तैयार किया गया काढ़ा पाचन और मासिक धर्म की समस्याओं में लाभकारी होता है। 🔹 पेस्ट – घाव और त्वचा रोगों के उपचार के लिए इसकी पत्तियों का पेस्ट लगाया जाता है। 🔹 चूर्ण – इसका सूखा चूर्ण बवासीर और मधुमेह के उपचार में उपयोग किया जाता है। 🔹 आयुर्वेदिक औषधियों में प्रयोग – इसे कई पारंपरिक औषधियों में शामिल किया जाता है। लज्जालु के नुकसान और सावधानियाँ ⚠ अत्यधिक सेवन से पेट दर्द और अपच की समस्या हो सकती है। ⚠ गर्भवती महिलाओं को इसका उपयोग डॉक्टर की सलाह से करना चाहिए, क्योंकि यह गर्भाशय को संकुचित कर सकता है। ⚠ लंबे समय तक अधिक मात्रा में सेवन करने से रक्तचाप में गिरावट हो सकती है। ⚠ संवेदनशील त्वचा पर सीधे लगाने से एलर्जी या खुजली हो सकती है, इसलिए पहले पैच टेस्ट करना चाहिए। निष्कर्ष लज्जालु (Mimosa pudica) एक प्रभावी आयुर्वेदिक पौधा है, जो त्वचा, पाचन, मानसिक शांति और महिला स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है। इसके प्राकृतिक गुणों के कारण इसे कई औषधीय उपचारों में शामिल किया जाता है। हालांकि, इसे संतुलित मात्रा में और आवश्यक सावधानियों के साथ उपयोग करना चाहिए ताकि इसके अधिकतम लाभ प्राप्त किए जा सकें और किसी भी संभावित दुष्प्रभाव से बचा जा सके।