अमृत (Amrita) - Tinospora Cordifolia
परिचय
अमृत, जिसे वैज्ञानिक रूप से Tinospora Cordifolia कहा जाता है, आयुर्वेद में एक अत्यंत महत्वपूर्ण औषधीय जड़ी-बूटी है। इसे गिलोय के नाम से भी जाना जाता है। इसका उपयोग हजारों वर्षों से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने, बुखार को नियंत्रित करने, पाचन सुधारने और शरीर को डीटॉक्स करने के लिए किया जाता रहा है। अमृत को अमृतवल्ली भी कहा जाता है, क्योंकि यह शरीर के लिए अत्यंत लाभकारी होती है।
अमृत के फायदे
रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाए – अमृत शरीर की इम्यूनिटी को मजबूत बनाकर संक्रमण से बचाने में सहायक होती है।
बुखार और वायरल संक्रमण में उपयोगी – यह डेंगू, मलेरिया और वायरल बुखार में लाभदायक होती है।
पाचन तंत्र को सुधारती है – अमृत कब्ज, एसिडिटी और अपच जैसी समस्याओं को कम करने में मदद करती है।
शरीर को डीटॉक्स करती है – यह खून को साफ करने और हानिकारक विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में सहायक होती है।
मधुमेह में सहायक – अमृत रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में मदद कर सकती है।
हड्डियों और जोड़ों के लिए लाभकारी – गठिया और जोड़ों के दर्द में राहत देने में उपयोगी होती है।
तनाव और चिंता को कम करे – यह एक प्राकृतिक एडेप्टोजेन है, जो मानसिक तनाव को कम करने में सहायक होता है।
अमृत के उपयोग
काढ़े के रूप में – अमृत की बेल से बना काढ़ा इम्यूनिटी बढ़ाने और संक्रमण से बचाव के लिए लिया जाता है।
चूर्ण के रूप में – इसका पाउडर गर्म पानी या शहद के साथ सेवन किया जाता है।
रस के रूप में – ताजे पत्तों और तने का रस स्वास्थ्य लाभ के लिए पीया जाता है।
कैप्सूल या टैबलेट के रूप में – बाजार में गिलोय कैप्सूल और टैबलेट के रूप में भी उपलब्ध है।
अमृत के नुकसान
अत्यधिक सेवन से पेट की समस्या – ज्यादा मात्रा में लेने से अपच, गैस और दस्त की समस्या हो सकती है।
डायबिटीज के मरीजों को सतर्कता रखनी चाहिए – यह ब्लड शुगर को कम कर सकती है, इसलिए मधुमेह रोगियों को डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।
गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को सावधानी बरतनी चाहिए – इस दौरान इसके सेवन से पहले डॉक्टर से परामर्श आवश्यक है।
ऑटोइम्यून रोगों में सतर्कता – अमृत इम्यून सिस्टम को अधिक सक्रिय कर सकता है, जिससे कुछ ऑटोइम्यून बीमारियों (जैसे रूमेटॉइड आर्थराइटिस, ल्यूपस) में समस्या बढ़ सकती है।
निष्कर्ष
अमृत (Tinospora Cordifolia) एक बहुउपयोगी औषधीय पौधा है, जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने, बुखार को नियंत्रित करने, पाचन सुधारने और विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है। हालांकि, इसके अधिक सेवन से कुछ दुष्प्रभाव हो सकते हैं, इसलिए इसे संतुलित मात्रा में और चिकित्सकीय परामर्श के अनुसार ही लेना चाहिए।

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