पांडू रोग (Icterus Neonatorum) - कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक इलाज पांडू रोग (Icterus Neonatorum) नवजात शिशुओं में होने वाला एक सामान्य विकार है, जिसमें त्वचा और आंखों का सफेद भाग पीला पड़ जाता है। यह आमतौर पर जन्म के पहले सप्ताह में होता है और शरीर में बिलीरुबिन (Bilirubin) के बढ़ने के कारण होता है। यदि यह सामान्य रूप से ठीक न हो, तो यह शिशु के स्वास्थ्य के लिए गंभीर समस्या बन सकता है। इस लेख में हम पांडू रोग के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक उपचार के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे। पांडू रोग के कारण (Causes of Icterus Neonatorum) ⚠ अतिरिक्त बिलीरुबिन (Excess Bilirubin) - जन्म के बाद नवजात शिशु के शरीर में पुराने लाल रक्त कोशिकाओं का टूटना सामान्य है, जिससे अधिक बिलीरुबिन उत्पन्न होता है। ⚠ यकृत का अपरिपक्व होना (Immature Liver) - नवजात शिशु का यकृत पूरी तरह से विकसित नहीं होता, जिससे वह बिलीरुबिन को पूरी तरह से नहीं निकाल पाता। ⚠ माँ और शिशु के रक्त समूह में असमानता (Blood Group Incompatibility) - यदि माँ और शिशु के रक्त समूह अलग-अलग हैं, तो शिशु की लाल रक्त कोशिकाएँ तेजी से टूट सकती हैं, जिससे पीलिया बढ़ सकता है। ⚠ संक्रमण (Infections) - जन्म के समय संक्रमण होने से शिशु के लिवर पर असर पड़ सकता है, जिससे बिलीरुबिन का स्तर बढ़ जाता है। ⚠ जन्म के समय चोट (Birth Trauma) - प्रसव के दौरान चोट लगने से रक्त स्राव हो सकता है, जिससे शरीर में अधिक बिलीरुबिन बन सकता है। ⚠ अपर्याप्त स्तनपान (Inadequate Breastfeeding) - यदि शिशु को पर्याप्त मात्रा में दूध नहीं मिलता, तो उसका शरीर बिलीरुबिन को सही तरीके से बाहर नहीं निकाल पाता। पांडू रोग के लक्षण (Symptoms of Icterus Neonatorum) ⚠ त्वचा और आँखों में पीलापन (Yellowing of Skin & Eyes) - शिशु की त्वचा और आँखों का सफेद भाग पीला दिखाई देता है। ⚠ भूख न लगना (Loss of Appetite) - शिशु दूध पीने में रुचि नहीं दिखाता और कमजोर महसूस करता है। ⚠ अत्यधिक सुस्ती (Excessive Sleepiness) - शिशु सामान्य से अधिक सोता है और धीमी प्रतिक्रिया देता है। ⚠ मल का हल्का रंग (Pale Stools) - मल का रंग सामान्य से हल्का या सफेद हो सकता है। ⚠ गहरे रंग का मूत्र (Dark Urine) - शिशु का मूत्र सामान्य से अधिक गहरा दिखाई देता है। ⚠ चिड़चिड़ापन (Irritability) - शिशु बार-बार रोता है और बेचैन महसूस करता है। पांडू रोग का आयुर्वेदिक इलाज (Ayurvedic Treatment for Icterus Neonatorum) ⚠ नीम (Neem) - नीम के पत्तों का रस शिशु की त्वचा पर लगाने से पीलिया जल्दी ठीक हो सकता है। ⚠ हल्दी (Turmeric) - हल्दी में एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं, जो लिवर को स्वस्थ रखते हैं। ⚠ गिलोय (Giloy) - गिलोय का काढ़ा माँ को देने से शिशु को रोग प्रतिरोधक क्षमता मिलती है और लिवर की कार्यक्षमता बढ़ती है। ⚠ आंवला (Amla) - आंवला लिवर को मजबूत बनाता है और रक्त को शुद्ध करता है। ⚠ शहद (Honey) - एक छोटी मात्रा में शहद देने से शिशु के पाचन तंत्र और लिवर की सेहत में सुधार हो सकता है। ⚠ धूप चिकित्सा (Sunlight Therapy) - सुबह की हल्की धूप में शिशु को रखने से बिलीरुबिन का स्तर कम होता है। ⚠ स्तनपान बढ़ाएं (Increase Breastfeeding) - माँ का दूध शिशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है और शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है। पांडू रोग से बचाव के उपाय (Prevention Tips) ⚠ माँ को गर्भावस्था के दौरान पोषक आहार लेना चाहिए। ⚠ नवजात शिशु को समय-समय पर डॉक्टर से जांच करानी चाहिए। ⚠ स्तनपान नियमित रूप से कराएं, ताकि शरीर से बिलीरुबिन बाहर निकल सके। ⚠ शिशु को हाइड्रेट रखें और आवश्यक पोषण प्रदान करें। ⚠ प्रसव के समय संक्रमण से बचाव के लिए स्वच्छता का ध्यान रखें। निष्कर्ष (Conclusion) पांडू रोग नवजात शिशुओं में सामान्य रूप से देखा जाता है, लेकिन यदि यह अधिक समय तक बना रहे, तो गंभीर समस्या बन सकता है। आयुर्वेदिक उपचार, संतुलित आहार और धूप चिकित्सा से इसे नियंत्रित किया जा सकता है। यदि शिशु में पीलिया के लक्षण अधिक गंभीर हो जाएं, तो तुरंत डॉक्टर से परामर्श लेना आवश्यक है।