पाइयेलोनेफ्राइटिस (Pyelonephritis) - कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक उपचारपाइयेलोनेफ्राइटिस एक गंभीर किडनी संक्रमण है, जिसमें किडनी के पेल्विस (मूत्र संग्रहण क्षेत्र) में सूजन हो जाती है। यह संक्रमण अक्सर मूत्रमार्ग से बैक्टीरिया के प्रवेश के कारण होता है। इस लेख में हम पाइयेलोनेफ्राइटिस के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक उपचार के बारे में संक्षेप में जानेंगे।पाइयेलोनेफ्राइटिस के कारण⚠ बैक्टीरियल संक्रमण - मूत्रमार्ग में संक्रमण के कारण बैक्टीरिया किडनी तक पहुंच जाते हैं।⚠ मूत्र मार्ग में अवरोध - पत्थर या संकीर्णता जैसी समस्याओं से संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।⚠ प्रतिरक्षा प्रणाली में कमजोरी - कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली से संक्रमण आसानी से फैल सकता है।⚠ गर्भावस्था - गर्भावस्था के दौरान हार्मोनल बदलाव संक्रमण के जोखिम को बढ़ाते हैं।पाइयेलोनेफ्राइटिस के लक्षण⚠ तीव्र बुखार - अचानक तेज बुखार और कंपकंपी हो सकती है।⚠ पीठ में दर्द - किडनी के क्षेत्र में दर्द महसूस होता है।⚠ पेशाब में जलन - पेशाब करते समय जलन या दर्द की समस्या हो सकती है।⚠ मितली और उल्टी - पेट में दर्द के साथ मितली और उल्टी की शिकायत भी देखी जा सकती है।⚠ थकान - संपूर्ण शरीर में कमजोरी और थकान महसूस होती है।पाइयेलोनेफ्राइटिस का आयुर्वेदिक उपचार⚠ नीम - नीम के अर्क और पत्तों का सेवन संक्रमण और सूजन कम करने में सहायक होता है।⚠ त्रिफला - त्रिफला पाचन में सुधार करता है और शरीर से विषाक्त पदार्थ निकालने में मदद करता है।⚠ हरिद्रा - हल्दी के प्राकृतिक एंटीइंफ्लेमेटरी गुण सूजन और संक्रमण को नियंत्रित करने में उपयोगी होते हैं, इसे दूध या गर्म पानी के साथ लिया जा सकता है।⚠ अश्वगंधा - अश्वगंधा प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाती है और तनाव कम करने में सहायक होती है।⚠ तुलसी के पत्ते - तुलसी का रस या पत्ते चबाने से संक्रमण में राहत मिल सकती है।⚠ योग और ध्यान - नियमित योग और ध्यान से मानसिक तनाव कम हो जाता है, जिससे उपचार प्रक्रिया में सहारा मिलता है।रोकथाम के उपाय⚠ स्वस्थ आहार और पर्याप्त पानी का सेवन करें। ⚠ मूत्रमार्ग की स्वच्छता का ध्यान रखें। ⚠ तनाव मुक्त जीवनशैली अपनाएं। ⚠ नियमित चिकित्सकीय जांच कराएं।निष्कर्षपाइयेलोनेफ्राइटिस एक गंभीर संक्रमण है जिसे समय पर पहचान और उचित उपचार से नियंत्रित किया जा सकता है। आयुर्वेदिक उपायों के साथ संतुलित जीवनशैली अपनाने से इस रोग से बचाव संभव है। यदि लक्षणों में कोई बदलाव या वृद्धि हो तो तुरंत चिकित्सकीय परामर्श लेना आवश्यक है।