बेरिलिओसिस (Berylliosis) - परिचय, कारण, लक्षण, आयुर्वेदिक उपचार एवं रोकथाम के उपायपरिचय बेरिलिओसिस एक दीर्घकालिक औद्योगिक फुफ्फुस रोग है जो बेरिलियम धूल के लगातार संपर्क से उत्पन्न होता है। यह रोग मुख्यतः उन उद्योगों में देखा जाता है जहाँ बेरिलियम का उपयोग होता है, जैसे एयरोस्पेस, न्यूक्लियर रिएक्टर, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण एवं धातु निर्माण के कार्यस्थल। बेरिलियम के कणों के इनहेलेशन से फेफड़ों में सूजन, ग्रान्युलोमा एवं प्रतिरक्षा प्रणाली में अतिसंवेदनशीलता विकसित हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप रोगी को सांस लेने में कठिनाई, सूखी खांसी एवं अन्य श्वसन संबंधी जटिलताओं का सामना करना पड़ता है।कारण बेरिलिओसिस के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं: ⚠ [b]बेरिलियम धूल कण का इनहेलेशनबेरिलियम धूल कणों का लंबे समय तक इनहेलेशन से फेफड़ों में सूजन एवं प्रतिरक्षा प्रणाली की असामान्यता उत्पन्न होती है। ⚠ [b]औद्योगिक संपर्कएयरोस्पेस, न्यूक्लियर रिएक्टर एवं अन्य धातु निर्माण उद्योगों में कार्यरत कर्मी बेरिलियम धूल के संपर्क में रहते हैं, जिससे रोग का जोखिम बढ़ जाता है। ⚠ [b]अपर्याप्त सुरक्षा उपायउद्योगिक क्षेत्रों में उचित मास्क, सुरक्षात्मक कपड़े एवं वेंटिलेशन का अभाव बेरिलियम के कणों के अधिक इनहेलेशन का कारण बनता है।[b]लक्षण बेरिलिओसिस के लक्षण अक्सर धीरे-धीरे विकसित होते हैं और इनमें शामिल हैं: ⚠ [b]सांस लेने में कठिनाईफेफड़ों में सूजन एवं ग्रान्युलोमा के कारण रोगी को विशेषकर शारीरिक प्रयास के समय सांस लेने में रुकावट महसूस होती है। ⚠ [b]लगातार सूखी खांसीधीरे-धीरे बढ़ती सूखी खांसी बेरिलियम धूल के कारण उत्पन्न होती है, जो समय के साथ और अधिक तीव्र हो सकती है। ⚠ [b]छाती में दर्द एवं भारीपनफेफड़ों में सूजन तथा ग्रान्युलोमा के कारण छाती में दबाव, दर्द एवं भारीपन का अनुभव होता है। ⚠ [b]थकान एवं कमजोरीदीर्घकालिक संपर्क से शरीर में ऊर्जा की कमी, तीव्र थकान एवं कमजोरी उत्पन्न होती है, जो रोगी के दैनिक कार्यों को प्रभावित करती है। ⚠ [b]दीर्घकालिक श्वसन संबंधी जटिलताएँयदि समय रहते उचित उपचार न किया जाए, तो फेफड़ों में स्थायी परिवर्तन एवं श्वसन संबंधी गंभीर जटिलताएँ विकसित हो सकती हैं।[b]आयुर्वेदिक उपचार बेरिलिओसिस के प्रबंधन में आयुर्वेदिक उपचार का महत्वपूर्ण स्थान है। आयुर्वेद में रोग के मुख्य लक्षणों, जैसे सूजन एवं प्रतिरक्षा असामान्यता, को ध्यान में रखते हुए निम्नलिखित उपायों की सलाह दी जाती है: ⚠ [b]अश्वगंधाअश्वगंधा प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करती है एवं सूजन कम करने में सहायक होती है, जिससे फेफड़ों की मरम्मत में सुधार संभव होता है। ⚠ [b]हल्दीहल्दी के एंटीइंफ्लेमेटरी एवं एंटीऑक्सीडेंट गुण फेफड़ों में सूजन को कम करने एवं संक्रमण से लड़ने में मदद करते हैं। ⚠ [b]तुलसीतुलसी का काढ़ा पीने से श्वसन तंत्र में जमे बलगम को साफ करने एवं संक्रमण के जोखिम को कम करने में लाभ होता है। ⚠ [b]त्रिफलात्रिफला पाचन क्रिया को सुधारने एवं शरीर से विषाक्त पदार्थ निकालने में सहायक होती है, जिससे समग्र स्वास्थ्य में सुधार होता है। ⚠ [b]नीमनीम के पत्तों एवं अर्क में प्राकृतिक एंटीसेप्टिक गुण होते हैं, जो सूजन एवं संक्रमण को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। ⚠ [b]योग एवं प्राणायामनियमित योग, प्राणायाम एवं ध्यान से श्वसन क्षमता में वृद्धि होती है एवं फेफड़ों की सफाई में सहायता मिलती है। विशेषकर अनुलोम-विलोम एवं कपालभाति प्राणायाम लाभकारी सिद्ध होते हैं।[b]रोकथाम के उपाय बेरिलिओसिस के प्रभाव को रोकने एवं नियंत्रित करने हेतु निम्नलिखित रोकथाम के उपाय अपनाए जाने चाहिए: ⚠ [b]उद्योगिक सुरक्षा उपायउद्योगों में कार्यरत कर्मियों को मास्क, सुरक्षात्मक कपड़े एवं उचित वेंटिलेशन का उपयोग करना चाहिए ताकि बेरिलियम धूल का इनहेलेशन न्यूनतम हो सके। ⚠ [b]नियमित स्वास्थ्य जांचउच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में काम करने वाले व्यक्तियों को नियमित फेफड़ों की जांच एवं चिकित्सकीय परामर्श अवश्य लेना चाहिए। ⚠ [b]स्वच्छता एवं हाइजीनकार्यस्थल एवं आवासीय क्षेत्रों में नियमित सफाई एवं स्वच्छता बनाए रखने से रोग के जोखिम को कम किया जा सकता है। ⚠ [b]संतुलित आहारपोषक तत्वों से भरपूर संतुलित आहार लेने से शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होती है, जो रोग से लड़ने में सहायक होता है।[b]निष्कर्षबेरिलिओसिस एक दीर्घकालिक औद्योगिक फुफ्फुस रोग है जो बेरिलियम धूल के लगातार संपर्क से उत्पन्न होता है। रोगी में सांस लेने में कठिनाई, सूखी खांसी, छाती में दर्द एवं थकान जैसे लक्षण विकसित होते हैं। आयुर्वेदिक उपचार में अश्वगंधा, हल्दी, तुलसी, त्रिफला एवं नीम जैसे प्राकृतिक उपाय तथा नियमित योग एवं प्राणायाम अपनाने से फेफड़ों की कार्यक्षमता में सुधार एवं सूजन में कमी संभव है। लेख सारांश के रूप में यह कह सकते हैं कि बेरिलिओसिस के प्रभाव को कम करने एवं रोकथाम हेतु उद्योगिक सुरक्षा उपाय, नियमित स्वास्थ्य जांच एवं आयुर्वेदिक उपचार का संयोजन अत्यंत आवश्यक है। यदि लक्षण गंभीर प्रतीत हों तो विशेषज्ञ से तत्काल परामर्श लेना अनिवार्य है।