ऑक्युलर अल्बिनिज़्म (Ocular Albinism) - परिचय, कारण, लक्षण, आयुर्वेदिक उपचार एवं रोकथाम के उपायपरिचय ऑक्युलर अल्बिनिज़्म एक अनुवांशिक नेत्र विकार है जिसमें आंखों के अंदर मेलानिन की कमी के कारण आईरिस एवं रेटिना में हल्कापन रहता है। इस स्थिति के कारण दृष्टि में कमी, तेज प्रकाश के प्रति अत्यधिक संवेदनशीलता एवं धुंधलापन जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं। यह विकार जन्मजात होता है एवं पारिवारिक इतिहास में देखा जा सकता है।कारण ⚠ [b]अनुवांशिक दोषमुख्य कारण अनुवांशिक दोष होते हैं जिनसे मेलानिन का पर्याप्त उत्पादन नहीं हो पाता। ⚠ [b]पारिवारिक इतिहासपरिवार में इस विकार का इतिहास होने से जोखिम बढ़ जाता है। ⚠ [b]मेलानिन उत्पादन में कमीमेलानिन की कमी से आईरिस एवं रेटिना में रंगद्रव्य का अभाव रहता है, जिससे नेत्रीय संरचनाएं प्रभावित होती हैं।[b]लक्षण⚠ [b]कम दृष्टिदृष्टि में कमी एवं धुंधलापन दिखाई देता है। ⚠ [b]प्रकाश के प्रति अत्यधिक संवेदनशीलतातेज रोशनी में आंखों में जलन एवं असुविधा होती है। ⚠ [b]आंखों का हल्का रंगआईरिस एवं रेटिना में सामान्य से हल्का रंग रहता है। ⚠ [b]निस्टैग्मसकई मामलों में आंखों में अनियमित हिलचाल देखी जा सकती है।[b]आयुर्वेदिक उपचार⚠ [b]त्रिफला नेत्र धोनात्रिफला के पानी से नियमित नेत्र धोने से आंखों की सफाई एवं रक्त संचार में सुधार होता है। ⚠ [b]तुलसी का काढ़ातुलसी के काढ़े का सेवन प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने में सहायक होता है। ⚠ [b]ब्राह्मीब्राह्मी का सेवन मानसिक शांति एवं नेत्र स्वास्थ्य को सुधारने में लाभकारी होता है। ⚠ [b]अश्वगंधाअश्वगंधा शरीर की शक्ति बढ़ाने एवं उम्र के प्रभाव को धीमा करने में मदद करती है। ⚠ [b]योग एवं प्राणायामनियमित योग, ध्यान एवं अनुलोम-विलोम प्राणायाम से मानसिक तनाव कम होता है एवं समग्र स्वास्थ्य में सुधार आता है।[b]रोकथाम के उपाय⚠ [b]सूर्य की किरणों से सुरक्षाधूप में निकलते समय सुरक्षात्मक चश्मा एवं टोपी का उपयोग करें। ⚠ [b]नियमित नेत्र जांचसमय-समय पर नेत्र विशेषज्ञ से जांच कराते रहें ताकि किसी परिवर्तन का शीघ्र पता चल सके। ⚠ [b]स्वस्थ जीवनशैली अपनाएंसंतुलित आहार, नियमित व्यायाम एवं पर्याप्त विश्राम से संपूर्ण स्वास्थ्य में सुधार होता है।[b]निष्कर्षऑक्युलर अल्बिनिज़्म एक अनुवांशिक नेत्र विकार है जिसमें मेलानिन की कमी के कारण आंखों में हल्कापन एवं दृष्टि संबंधी समस्याएं उत्पन्न होती हैं। उचित चिकित्सकीय देखरेख के साथ आयुर्वेदिक उपचार एवं स्वस्थ जीवनशैली का संयोजन इस विकार के प्रबंधन में सहायक हो सकता है; यदि लक्षणों में कोई परिवर्तन दिखाई दें, तो शीघ्र विशेषज्ञ से परामर्श करें।