सिस्टिनोसिस (Cystinosis) - परिचय, कारण, लक्षण, आयुर्वेदिक उपचार एवं रोकथाम के उपायपरिचय सिस्टिनोसिस एक दुर्लभ आनुवांशिक लायसोमल स्टोरेज विकार है जिसमें कोशिकाओं के लाइसोसोम में सिस्टीन नामक अमीनो एसिड का संचय हो जाता है। सिस्टीन के क्रिस्टल विभिन्न ऊतकों – विशेषकर गुर्दों, आंखों, मांसपेशियों एवं तंत्रिका तंत्र में जमा हो जाते हैं, जिससे इन अंगों का कार्य प्रभावित होता है। यह विकार ऑटोसोमल रिसेसिव तरीके से संचरित होता है।कारण ⚠ CTNS जीन में उत्परिवर्तन मुख्य कारण CTNS जीन में उत्परिवर्तन है, जिससे लाइसोसोम में सिस्टीन का निष्कासन बाधित हो जाता है। ⚠ एंजाइम की कमीसिस्टीन को शरीर से निकालने वाले एंजाइम की अपर्याप्तता के कारण सिस्टीन जमा हो जाता है। ⚠ [b]आनुवांशिक प्रसारपरिवार में इस विकार का इतिहास होने से नवजातों में इसकी संभावना बढ़ जाती है।[b]लक्षण ⚠ [b]गुर्दे की समस्याएंन्यफ्रोपैथिक सिस्टिनोसिस में गुर्दे का आकार बढ़ना, मूत्र विसर्जन में असमानता एवं गुर्दा विफलता का खतरा रहता है। ⚠ [b]आंखों में क्रिस्टल जमाकॉर्निया में सिस्टीन क्रिस्टल जमा होने से धुंधलापन एवं प्रकाश के प्रति अत्यधिक संवेदनशीलता होती है। ⚠ [b]मांसपेशियों एवं हड्डियों में कमजोरीशारीरिक विकास में मंदता, मांसपेशियों में कमजोरी एवं हड्डियों में असामान्य संरचना हो सकती है। ⚠ [b]त्वचा एवं अन्य ऊतकों में परिवर्तनत्वचा पर असामान्य धब्बे और ऊतकों में सूजन के लक्षण देखे जा सकते हैं। ⚠ [b]सामान्य थकान एवं ऊर्जा में कमीरोगी को सामान्य से अधिक थकान एवं ऊर्जा की कमी महसूस होती है।[b]आयुर्वेदिक उपचार⚠ [b]अश्वगंधाअश्वगंधा का सेवन शरीर की शक्ति बढ़ाने, सूजन कम करने एवं प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने में सहायक होता है। ⚠ [b]ब्राह्मीब्राह्मी का सेवन मानसिक संतुलन एवं न्यूरोलॉजिकल स्वास्थ्य में सुधार लाने में उपयोगी है। ⚠ [b]त्रिफलात्रिफला का नियमित सेवन पाचन तंत्र को स्वस्थ रखता है एवं शरीर से विषाक्त पदार्थों के निष्कासन में मदद करता है। ⚠ [b]हल्दीहल्दी के प्राकृतिक सूजनरोधी गुण शरीर में सूजन को नियंत्रित करने में सहायक होते हैं। ⚠ [b]तुलसी का काढ़ातुलसी के काढ़े का सेवन प्रतिरक्षा प्रणाली को सुदृढ़ कर संपूर्ण स्वास्थ्य में सुधार लाने में लाभकारी होता है। ⚠ [b]योग एवं प्राणायामनियमित योग, ध्यान एवं अनुलोम-विलोम प्राणायाम से मानसिक तनाव में कमी तथा रक्त परिसंचरण में सुधार होता है, जिससे ऊतकों को आवश्यक पोषण मिलता है।[b]रोकथाम के उपाय ⚠ [b]अनुवांशिक परामर्शपरिवार में सिस्टिनोसिस के इतिहास होने पर गर्भावस्था से पहले अनुवांशिक सलाह लेना लाभकारी हो सकता है। ⚠ [b]नवजात स्क्रीनिंगनवजात शिशुओं में शीघ्र जांच से रोग के प्रारंभिक संकेत का पता चल सकता है। ⚠ [b]नियंत्रित आहार एवं चिकित्सकीय देखरेखविशेष आहार योजना और नियमित चिकित्सकीय निगरानी से रोग के प्रभाव को नियंत्रित करने में सहायता मिलती है। ⚠ [b]स्वस्थ जीवनशैलीसंतुलित आहार, नियमित व्यायाम एवं पर्याप्त विश्राम से समग्र स्वास्थ्य में सुधार होता है और रक्त परिसंचरण बेहतर रहता है।[b]निष्कर्षसिस्टिनोसिस एक गंभीर आनुवांशिक विकार है जिसमें लाइसोसोम में सिस्टीन का संचय विभिन्न ऊतकों में क्रिस्टल के रूप में होता है, जिससे गुर्दे, आंखें एवं अन्य अंग प्रभावित होते हैं। नियमित चिकित्सकीय देखरेख, नियंत्रित आहार एवं स्वस्थ जीवनशैली के साथ आयुर्वेदिक उपचार – जैसे अश्वगंधा, ब्राह्मी, त्रिफला, हल्दी एवं तुलसी के काढ़े का संयोजन तथा नियमित योग एवं प्राणायाम – रोग के प्रभाव को कम करने एवं रोगी के जीवन स्तर में सुधार लाने में सहायक हो सकता है; यदि लक्षण बढ़ें, तो शीघ्र विशेषज्ञ से परामर्श करना अत्यंत आवश्यक है।