पोस्टहर्पेटिक न्यूराल्जिया (Postherpetic Neuralgia) - परिचय, कारण, लक्षण, आयुर्वेदिक उपचार एवं रोकथाम के उपायपरिचय पोस्टहर्पेटिक न्यूराल्जिया एक पुरानी न्यूरोपैथिक स्थिति है जो हर्पीस ज़ोस्टर (शिंगल्स) के बाद बची हुई नसों में होने वाले क्षतिग्रस्त परिवर्तन के कारण उत्पन्न होती है। इसमें प्रभावित क्षेत्र में जलन, झटकेदार दर्द, चुभन या लगातार तेज दर्द होता है, जो कई महीनों या वर्षों तक बनी रह सकती है। यह स्थिति मुख्यतः बुजुर्गों में देखी जाती है और जीवन की गुणवत्ता पर गहरा प्रभाव डाल सकती है।कारण ⚠ हर्पीस ज़ोस्टर संक्रमण से नसों का क्षयशिंगल्स के दौरान नसों में होने वाले संक्रमण के कारण नसों का नुकसान हो जाता है, जिससे दर्द बनी रहती है। ⚠ [b]उम्र एवं कमजोर प्रतिरक्षा प्रणालीबुजुर्गों में नसों का क्षरण और प्रतिरक्षा प्रणाली की कमजोरी इस स्थिति के जोखिम को बढ़ाती है। ⚠ [b]उच्च न्यूरोट्रांसमीटर असंतुलननसों के क्षतिग्रस्त होने से मस्तिष्क में दर्द संकेतों का असामान्य संचरण होता है, जिससे दर्द और संवेदनशीलता बनी रहती है।[b]लक्षण ⚠ [b]जलन एवं चुभन जैसा दर्दप्रभावित क्षेत्र में अक्सर जलन, चुभन, झटकेदार या झुनझुनी दर्द का अनुभव होता है। ⚠ [b]अत्यधिक संवेदनशीलताछूने पर या हल्के स्पर्श से दर्द में वृद्धि, जिसे अलोडिनिया कहा जाता है। ⚠ [b]दैनिक गतिविधियों में बाधालगातार दर्द से नींद में खलल, ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई एवं मानसिक तनाव बढ़ जाता है।[b]आयुर्वेदिक उपचार ⚠ [b]अश्वगंधाअश्वगंधा का सेवन मानसिक तनाव कम करने एवं शरीर की शक्ति बढ़ाने में सहायक होता है, जिससे दर्द के स्तर में सुधार हो सकता है। ⚠ [b]ब्राह्मीब्राह्मी मस्तिष्क की कार्यक्षमता एवं न्यूरोलॉजिकल संतुलन को सुधारने में मदद करता है, जिससे दर्द का प्रबंधन संभव हो सके। ⚠ [b]हल्दीहल्दी के प्राकृतिक सूजनरोधी गुण नसों में सूजन एवं दर्द को कम करने में सहायक होते हैं। ⚠ [b]तुलसी का काढ़ातुलसी का काढ़ा प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने एवं संक्रमण के बाद के प्रभावों से लड़ने में मददगार होता है। ⚠ [b]शंखपुष्पीशंखपुष्पी का उपयोग तंत्रिका तंत्र को स्थिर करने एवं मन को शांत रखने में लाभकारी माना जाता है। ⚠ [b]त्रिफलात्रिफला का नियमित सेवन पाचन तंत्र को स्वस्थ रखता है एवं शरीर से विषाक्त पदार्थों के निष्कासन में सहायक होता है। ⚠ [b]योग एवं प्राणायामनियमित योग, ध्यान एवं अनुलोम-विलोम प्राणायाम से मानसिक तनाव में कमी एवं रक्त परिसंचरण में सुधार होता है, जिससे प्रभावित नसों तक आवश्यक पोषण बेहतर रूप से पहुँचता है। ⚠ [b]स्थानीय मालिश एवं ऊष्मा थेरेपीमेडिकेटेड आयुर्वेदिक तेलों से हल्की मालिश एवं गर्म कम्प्रेस से नसों में रक्त प्रवाह बढ़ाने एवं दर्द में राहत मिल सकती है।[b]रोकथाम के उपाय ⚠ [b]शिंगल्स के प्रारंभिक उपचारहर्पीस ज़ोस्टर संक्रमण के तुरंत बाद उचित एंटीवायरल उपचार से नसों को होने वाले क्षतिग्रस्त प्रभाव को कम किया जा सकता है। ⚠ [b]नियमित चिकित्सकीय जांचडॉक्टर द्वारा नियमित जांच से पोस्टहर्पेटिक न्यूराल्जिया के शुरुआती संकेतों का पता लगाया जा सकता है। ⚠ [b]तनाव प्रबंधनयोग, ध्यान एवं पर्याप्त विश्राम से मानसिक तनाव को नियंत्रित करना भी महत्वपूर्ण है। ⚠ [b]स्वस्थ जीवनशैलीसंतुलित आहार, नियमित व्यायाम एवं पर्याप्त नींद से शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत रहती है, जिससे नसों की मरम्मत में सहायता मिलती है।[b]निष्कर्षपोस्टहर्पेटिक न्यूराल्जिया हर्पीस ज़ोस्टर संक्रमण के पश्चात नसों में होने वाले क्षतिग्रस्त परिवर्तन के कारण एक पुरानी दर्दनाक स्थिति है। उचित चिकित्सकीय देखरेख, तनाव प्रबंधन एवं स्वस्थ जीवनशैली के साथ आयुर्वेदिक उपचार – जैसे अश्वगंधा, ब्राह्मी, हल्दी, तुलसी का काढ़ा, शंखपुष्पी, त्रिफला एवं नियमित योग एवं प्राणायाम – का संयोजन इस स्थिति के प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है; यदि लक्षण बढ़ें, तो शीघ्र विशेषज्ञ से परामर्श करना अत्यंत आवश्यक है।