एकैंथोसिस निग्रिकंस - परिचय, कारण, लक्षण, आयुर्वेदिक उपचार एवं रोकथाम के उपायपरिचय एकैंथोसिस निग्रिकंस एक त्वचा संबंधी समस्या है जिसमें त्वचा पर गाढ़े, काले तथा मखमली पैच बन जाते हैं। यह रोग मुख्यतः गर्दन, बगल, कमर एवं अन्य त्वचा के मोड़ों पर देखा जाता है। इसके उत्पन्न होने का संबंध अक्सर इंसुलिन प्रतिरोध, मोटापा एवं हार्मोनल असंतुलन से होता है। कुछ मामलों में यह रोग गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं की ओर भी संकेत कर सकता है, अतः सही समय पर उपचार एवं रोकथाम आवश्यक है।कारण ⚠ [b]इंसुलिन प्रतिरोधउच्च इंसुलिन स्तर त्वचा के सेल्स में वृद्धि को प्रेरित करते हैं जिससे त्वचा पर मोटापन एवं रंगत में गहराई आती है। ⚠ [b]आहार एवं मोटापाअस्वस्थ आहार तथा अधिक कैलोरी के सेवन से शरीर में वसा संचय बढ़ता है जिससे इंसुलिन प्रतिरोध की समस्या उत्पन्न होती है। ⚠ [b]हार्मोनल असंतुलनपीसीओएस, थायरॉइड एवं अन्य हार्मोन संबंधी विकार एकैंथोसिस निग्रिकंस के विकास में सहायक हो सकते हैं। ⚠ [b]आनुवांशिक प्रवृत्तिपरिवार में इस समस्या के इतिहास होने पर रोग के प्रकट होने की संभावना बढ़ जाती है। ⚠ [b]कुछ दवाइयों का सेवनविशेष दवाइयाँ एवं चिकित्सा प्रक्रियाएँ भी त्वचा पर असामान्य परिवर्तन का कारण बन सकती हैं।[b]लक्षण ⚠ [b]त्वचा का गाढ़ा एवं काला होनागर्दन, बगल एवं कमर जैसे क्षेत्रों में त्वचा पर गहरे रंग के पैच दिखाई देते हैं। ⚠ [b]मखमली तथा मोटी त्वचाप्रभावित क्षेत्रों में त्वचा का बनावट मखमली तथा मोटी हो जाती है, जिससे स्पर्श करने पर असामान्य अनुभव होता है। ⚠ [b]त्वचा की मोटाई एवं असमानतासमय के साथ त्वचा में मोटापा बढ़ता है तथा प्रभावित क्षेत्रों का आकार एवं बनावट में परिवर्तन देखा जा सकता है। ⚠ [b]कभी-कभी खुजली एवं जलनकुछ मामलों में प्रभावित त्वचा में हल्की खुजली तथा जलन की शिकायत हो सकती है।[b]आयुर्वेदिक उपचार आयुर्वेद में एकैंथोसिस निग्रिकंस के उपचार का मुख्य उद्देश्य शरीर के दोषों को संतुलित करना तथा विषाक्तता को दूर करना माना जाता है। कुछ सहायक उपाय निम्नलिखित हैं: ⚠ [b]नीमनीम में प्राकृतिक एंटीसेप्टिक तथा एंटीइंफ्लेमेटरी गुण होते हैं जो त्वचा की सफाई एवं संक्रमण नियंत्रण में सहायक हैं। ⚠ [b]हल्दीहल्दी के एंटीइंफ्लेमेटरी एवं एंटीऑक्सीडेंट गुण त्वचा की सूजन कम करने तथा प्राकृतिक रंगत बहाल करने में मदद करते हैं। ⚠ [b]त्रिफलात्रिफला पाचन क्रिया को सुधारने एवं शरीर से विषाक्त पदार्थ निकालने में उपयोगी है, जिससे त्वचा संबंधी विकारों में राहत मिलती है। ⚠ [b]अश्वगंधाअश्वगंधा शारीरिक ऊर्जा बढ़ाने एवं मेटाबोलिज्म में सुधार लाने में सहायक है, जो त्वचा की सामान्य क्रिया में सहयोग करता है। ⚠ [b]गिलोयगिलोय प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने के साथ-साथ त्वचा की सूजन एवं संक्रमण को नियंत्रित करने में कारगर है। ⚠ [b]योग एवं प्राणायामनियमित योग, प्राणायाम एवं ध्यान से तनाव कम होता है तथा शरीर के विषाक्त पदार्थों का निकास संभव होता है, जिससे त्वचा में सुधार आता है।[b]रोकथाम के उपाय ⚠ [b]स्वस्थ आहार का पालनफल, सब्जियां एवं अनाज आधारित संतुलित आहार से शरीर में आवश्यक पोषक तत्वों की प्राप्ति सुनिश्चित होती है तथा मोटापे से बचाव होता है। ⚠ [b]नियमित व्यायामदैनिक व्यायाम एवं शारीरिक गतिविधि से वजन नियंत्रित रहता है तथा इंसुलिन प्रतिरोध में कमी आती है। ⚠ [b]वजन नियंत्रणअत्यधिक वजन से बचाव तथा नियमित वजन जांच से रोग के प्रकट होने की संभावना कम होती है। ⚠ [b]नियमित स्वास्थ्य जांचसमय-समय पर चिकित्सकीय जांच से हार्मोनल असंतुलन एवं अन्य संबंधित विकारों का शीघ्र पता चल सकता है। ⚠ [b]मानसिक तनाव का प्रबंधनयोग, ध्यान एवं अन्य विश्राम तकनीकों से मानसिक तनाव कम करने से शरीर की समग्र सेहत में सुधार होता है।[b]निष्कर्षएकैंथोसिस निग्रिकंस त्वचा पर गाढ़े एवं काले पैच के रूप में प्रकट होने वाला एक रोग है जिसका संबंध मुख्यतः इंसुलिन प्रतिरोध, मोटापा एवं हार्मोनल असंतुलन से है। स्वस्थ जीवनशैली, संतुलित आहार एवं नियमित व्यायाम इस रोग के प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आयुर्वेदिक उपचार, जैसे नीम, हल्दी, त्रिफला, अश्वगंधा, गिलोय एवं योग-प्राणायाम, शरीर के दोषों को संतुलित करने एवं त्वचा की सेहत बहाल करने में सहायक हो सकते हैं। यदि लक्षणों में वृद्धि हो या चिंता का विषय बने, तो विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य करें।